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Paraaya-Dhan

wedding

बस अभी मेरी बिटिया की बिदाई हुई ही थी..आँखों की नमी पूरी गयी भी नहीं थी की हज़ारो ख्याल मन में गहरा गए. मेरे लाढ़ की बिटिया, मेरे घर की रौनक, आज दूसरे आंगन का उजियारा बनने जा रही है. मेरी लाडो जिसको हमने सर आँखों पे रखा पढ़ाया लिखाया, उसके हर ख्वाबो को अपना बना के जिया.

उसके उठने से पहले उसके पापा उसके लिए चाय बना दिया करते थे. उसका अलार्म बजे उससे थीक पहले उसके कमरे में पहुंच कर बड़े प्यार से उठाते और चाय थमा के कहते चल बेटा आज मैं भी साथ में पढूंगा, तू डॉक्टरी कर मैं देश दुनिया की खबरें देख के तुझे नाश्ते के वक़्त सुनाऊंगा. हाँ…बेटा ही कहा करते थे उसे हमेशा न जाने क्यों.
पढ़ा लिखा के उसको डॉक्टर बना दिया, मजाल थी जो मैं कभी उसको घर गृहस्थी के काम में जबरदस्ती झोक पाती, उसके पापा पहले ही कह देते थे उसे समय पर खाना, चाय कमरे में ही दे दिया करो. देश की सेवा करेगी मेरी गुड़िया उसका समय अनमोल है.

उसके ससुराल वाले कहते हैं की हमारे घर की लक्ष्मी बना के ले जा रहे हैं, बेटी ही बन के रहेगी.
पर…
यही कुछ शब्द थे जो मैंने भी सुने थे.. मेरे माता पिता को मेरे ससुराल वालों  ने ठीक यही कहा था आज से ३२ साल पहले.
मैं भी अपना घर छोड़ के तुम्हारे घर आगयी थी .. तुम्हारा नाम अपना लिया था .. तुम्हारे घर के बेटे को अपना लिया.. 
अपने घर में कभी काम न करने वाली लड़की, केवल अठारह बरस में ब्याह गयी पर पूरा तुम्हारा घर संभाल लिया. फिर भी आँखों में एक आस हमेशा बानी रही की मुझे भी वही प्यार मिले जो मेरी नंदों को मिलता है. वही सम्मान मिले, अपने पिता के नाम को छोड़ कर आपका नाम अपनाया तो सोचा इस सम्मान के साथ और भी प्यार सम्मान मिलेगा, नंदों की शादी के बाद मै ही इस घर में बेटी की कमी पूरी करुँगी. पर कहाँ ऐसा हो पाता है. मेरे बच्चे ज़रूर उनके अपने कहलाते हैं पर मैं नहीं. क्यों …?
क्युकी मैं शायद दूसरे घर से आयी हूँ.
अब तो कई साल बीत गए .. बच्चे भी बड़े होगये, देवर नंदों सब की शादी मेरे ही सामने होगयी. फिर भी एक अपनेपन की कमी सी है. अगर मेरे अपने बच्चे न होते या पति का थोड़ा साथ न मिला होता तो न जाने इतना लम्बा सफर कैसे काटती .

क्या यही सब देखना एक औरत की किस्मत होती है.
इस सब को सोच के एक पल को तक़दीर को कोसने लगी, की भगवान क्यों बेटी दी मुझे, अगर यही सब उसे भी सहना पड़ा तो मुझसे न देखा जायेगा.
खून के घूँट निगलते निगलते आंसू बहाते देख वो मेरे ओर आयी और उसे समझते देर न लगी.. बोली.. “मम्मीजी मुझे पूरी उम्मीद है दीदी की सास भी आप जैसी ही होंगी, अच्छे कर्मो का फल ऐसी जन्म में मिलते देखा है मैंने. अपने मुझे जिस प्यार और सम्मान से रखा, जैसे दीदी मेरी अपनी बहिन से ज्यादा अपनी बन के रही ..सारे दिखावटीपन से परे वही प्यार और सम्मान उनके भी नसीब में ज़रूर लिखा होगा ईश्वर ने.”

बहु के ये बात सुन के आंसुओ की धारा और बढ़ गयी किन्तु मन में ठंडक और दिल में सुकून आगया.

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