Tribute To Daily Nirbhaya’s…

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Tribute To Nirbhaya

मूक – विचलित – अचंभित सीता 
अग्नि से आँख मिलाये खड़ी है
ज्वाला अनल की, भभगति किन्तु शर्मसार सी
न आज निर्भीक प्रचंड है
न अखंड- अबूझ.. गुरुर से भरी
जो लंका को एक चिंगारी भर में राख कर गयी.

आँखों को झुकायी सी अग्नि नीली (ठंडी) लपटों के संग
पलकों से आंसू बहा रही हैं.

तू आज नही हर युग में हे सीते!..
यूँ ही झुलसायी जाएगी
मै देख- जान सब बूझ कर भी
मूक खड़ी सुलघ जाउंगी.

रावण अधम की करनी पर
तेरा परित्याग अपेक्षित होगा

आज रही खड़ी गर मुझमे यूँ
तो फिर-फिर परीक्षित की जाएगी
जो न बोली सत्य कटु.. इस जगत को तो
हर दिन जलायी जाएगी.

है माता तू.. ज्वाला स्वयं..
जननी तू .. चामुंडा तुम
पहचान जान और उठ खड़े हो.
मर्यादा का गहना पहने तू.. केवल लूटी जाएगी,
शर्म हया लहज़े के दामन तले
हस्ती तेरी.. केवल कुचली जाएगी.

हो कमरबद्ध – संकल्पपूर्ण
कर ध्वस्त हर दुराचारी को
जा खड़े हो निःसंकोच स्वयं
देख.. ये झूठा जग न तुझपे भरी हो.

एक..!! बस एक-साहस का कदम कठोर
और तू जग की हर नारी को तर जाएगी
बढ़ निकल चली गर प्रतिकार पर
‘निर्भया’ – निर्भीक – निर्विकार तू
हर युग में आत्मविश्वास से
ज़ुर्रत (bravery ) का परचम फहराएगी.

और रही अगर चुप यूँ ही अब भी
तो त्याग कर, नर-अत्याचार सेहकर और मान अपना गवां के भी..
“निर्लज्ज” सिर्फ …तू ही कहलाएगी !!!