bharat ek arthikshakti

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भारत एक आर्थिकशक्ति

आज पेपर में न्यूज़ पढ़ी की भारत दुनिया में छटी शक्ति बना, फ्रांस को पछाड़ा, मन में सोचा एक समय था, जब हम दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति हुआ करते थे, और आगे भी हम आर्थिक जगत के बादशाह होंगे इसमें कौनसी बड़ी बात है, फिर ये तो हर साल बदलती रहती है। इतिहासकार “येंगस मेडिसन“ ने लिखा है कि भारत पहली शताब्दी से दसवीं शताब्दी तक दुनिया की आर्थिक महाशक्ति था, जिसका जीडीपी 32.9% हुआ करता था, परंतु अंग्रेजों के शासन काल में भारत का सबसे ज्यादा शोषण हुआ। स्वतंत्र भारत में हमनें समाजवाद को अपनाया और हमारी नीतियाँ “रूस” से प्रभावित होने से बहुत ज्यादा आर्थिक क्षेत्र में हम उन्नति नहीं कर पाये, परंतु 1991 के बाद हमने आर्थिक सुधार की तरफ ध्यान देना शुरू किया और धीरे धीरे हम दुनिया में एक आर्थिक प्रगतिशील देश के रूप में गिने जाने लगे।

किसी भी देश का सकाल घरेलू उत्पाद (GDP), उत्पादन(अंतिम उत्पाद),सेवाएँ और व्यय (जिसमें सरकारी खर्च शामिल है) के बराबर होता है। हमारे देश कि अर्थव्यवस्था मिश्रित अर्थव्यवस्था है जिसमें सार्वजनिक और निजी क्षेत्र शामिल हैं।हमारे देश कि अर्थव्यवस्था में 60% योगदान सेवाओं का और शेष कृषि का है, जैसा कि NSSO के आकड़े दर्शाते हैं,इन्हीं आकड़ों पर ध्यान दें तो पाएंगे कि हमारे देश के तकरीबन 02 करोड़ से ज्यादा लोग विदेशों में काम करते हैं,जिसमें सबसे अधिक साफ्टवेयर उद्योग में हैं। सिर्फ अमेरिका में उनके साफ्टवेयर उद्योग में हमारे देश के 30% लोग काम करते हैं, जो आर्थिक शक्ति के लिए एक चिंता का विषय हो सकता है(जैसा कि आज कल अमेरिका कि नीति चल रही हैं)। इसके साथ ही यह भी हमें मालूम होना चाहिए कि हम दूध में दुनिया के बड़े उत्पादकों में से है,  गेहूं,चावल,चीनी और मसले में भी दुनिया में स्थान रखते है, इतना ही नहीं हमारे पास लोह अयस्क,कोयला और टाइटेनियम के विशाल भंडार है, जिससे हम दुनिया में व्यापार कर अच्छी ख़ासी रकम कमाते हैं।उत्पादन, खपत एवं वितरण एक सामाजिक व्यवस्था है, हमें इस पर ध्यान देना होगा, जिस पर आर्थिक नीति निर्भर करती है। दुनिया का सिद्धान्त है, कि खर्च करोगे हो कमाई भी बढ़नी होगी इससे हमारी मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) बढ़ेगा और वही हमें हमारा पुराना सम्मान वापस दिलाएगा।

इस सब के साथ हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम HDP मानव विकास सूचकांक में दुनिया में निचली पाएदान पर हैं, इसमें तीन घटक हैं स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रति व्यक्ति आय, जिसमें हमें अभी बहुत कुछ करना होगा । यदि रंगराजन और तेंदुलकर कमेंटी की शिफारिशों पर ध्यान दे तो गरीबी रेखा का मूल्यांकन गाँव में 328 रु.,शहर में 454 रु. और यदि 05 व्यक्ति का परिवार है, तो 1640 रु. प्रति माह से कम कमाने वाले लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं, तब जबकि हमारे देश में प्रचुर खनिज सम्पदा,खेती के लिए पर्याप्त जमीन,भरपूर प्रकृतिक संसाधन और मानव श्रम उपलब्ध हैं।

अस्तु, हमें आंकड़ों से इतर हमारे देश के संसाधनों का उपयोग जनहित में करके प्रति व्यक्ति आय बढ़ाना होगा साथ ही शिक्षा और स्वास्थ्य की व्यवस्था पर भी ध्यान देना होगा, तभी हम फिर से दुनिया में सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति के रूप में उभरेंगे, और फिर से दुनिया मेरे देश को “सोने कि चिड़िया” से संबोधित करेगी।