आज पूरे विश्व में एक चर्चा छिड़ी हुई है, कि दुनिया लोकतन्त्र से दूर जाती जा रही है, जो एक चिंता का विषय है।TIME ने भी इस विषय पर एडमिरल स्टेव्रडीज़ का लेख छापा है, जिसमें लेखक ने बहुत ही सटीक, समीक्षात्मक बिचार व्यक्त किए हैं।आज रूस और चीन में एक व्यक्ति का शासन स्पष्ट दिखाता है। वहीं यदि दुनिया पर नजर डालें तो लेटिन अमेरिका और अटलांटिका में तानाशाही अपनी चरम पर है। दुनिया में कई जगह मीडिया, अदालतों, प्रदर्शनों पर सत्ता का सीधा प्रभाव अच्छे संकेत नहीं है।
दुनिया में चुनी हुई सरकारें अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही हैं, कई जगह ताकतवर लोग सत्ता और प्रशासन पर अपना प्रभाव जमाने का प्रयास कर रहे है,ऐसा प्रतीत होता है,कि वे अपनी समानान्तर व्यवस्था बनाते जा रहे हैं, जो चुनी हुई सरकार के लिए एक चुनौती हैं।कालांतर में यह व्यवस्था लोकतन्त्र के लिए खतरा हो सकती है। TIME के फैलो इयान ब्रेगर ने तो यहाँ तक कह दिया की ये अधिकरवाद की राजनीति बहुत जल्दी दुनिया को एक येसा व्यक्ति देगी जो पूरी दुनिया को प्रभावित करेगा, जो सच भी हो सकता है।
सारी सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था, आर्थिक आधार पर निर्भर होती हैं, और आज दुनिया 2010 के आर्थिक संकट से भी बुरी स्थिति में दिख रही है, जिस पर अर्थशास्त्रियों की निगाह लगी है।इसका प्रमुख कारण देशों से लोगों का पलायन,आतंकवाद और आर्थिक असामानता है। आज लोग ऐसी जगह जाना चाहते है जहां नागरिक स्वतन्त्रता, राजनैतिक स्पर्धा और मीडिया की स्वतन्त्रता हो,परंतु दुर्भाग्य की ऐसे देशों की संख्या धीरे धीरे घाटी जा रही है।
आज पूरी दुनिया में भय और आतंक के वातावरण के लिए सोशल मीडिया और इंटरनेट बहुत हद तक जुम्मेदार है, यह घर बैठे कुत्सित मानसिकता के लोगों को बहुत ही सरल तरीके से अस्थिरता फैलाने का हथियार देती है और हमारे के पास इससे निपटने की लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई कारगर कानून नहीं है, जो, इन्हें खुल कर खेलने की अनुमति देता है, जो दुनिया के लिए बड़ा खतरा है।इसका उपयोग हर कोई अपने स्वार्थ के लिए किसी भी हद तक कर रहा है और तो और दुनिया में आम चुनाव तक को प्रभावित किया जा रहा है, वो भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जो लोकतन्त्र के लिए एक बड़ा खतरा है। आज पूरी दुनिया में हर 3 में से 1 आदमी अधिनायकवाद के आधीन खड़ा है और यदि सोशल मीडिया और इंटरनेट पर नियंत्रण नहीं किया गया तो दुनिया में लोकतन्त्र कमजोर होता जाएगा जो मानवता के लिए अहितकर होगा।
इन सब परिस्थियों के बाद भी हमें आशा नहीं छोडना चाहिए, क्योंकि यदि दुनिया के इतिहास पर नजर दौड़ायेँ तो पायंगे कि कमोबेश इस प्रकार कि स्थितियां समय समय पर बनती रही हैं, और जनता ने इसे करारा जबाब देकर,
लोकतन्त्र कि पुन: स्थापित किया है। अस्तु, उम्मीद से आसमा टीका है।
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