चुनावी परिणाम/Exit Poll – Politics का समाज पर असर ! (एक व्यंग्य)

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Exit Poll - Politics

हॅलो और भाई क्या हो रहा है, कुछ नहीं, यार ये TV चेनलों पर मूँगफली,चाट,पकोड़ियाँ बिक रहीं है, उसका ही माजा ले रहा हूँ । क्या ….अरे भाई ये एक्ज़िट पोल आ रहा है न कोई किसी को जिता रहा है कोई किसी को हरा रहा है, और उस जनता का मजा ले रहा है, जिसने वोट डाली है, है न मजेदार बात, कारण, कर्ता को ही मूर्ख बना रहा है। सारे सीरियल फैल हैं इसके आगे “मजा लो बस “ ये राष्ट्रीय स्तर के नेता की भी स्थिति दड्वे की मुर्गियों जैसी हो गई है कसाई को आते देख वे जैसे घबरा के इधर उधर भागती है, चूँ चूँ करती हैं, बैसे ही ये भी रिजल्ट से परेशान हैं।कोई देश भक्त हो रहा है,कोई पाकिस्तान भक्त और दुख तो ये है की कोई किसी को हाराने के चक्कर में खुद हार रहा है और कोई जीतने की खुशी में इतना मद मस्त है कि हरे हुए में भी जान डाल रहा है।

यार, ये राष्ट्रीय पार्टीयां हैं कि किसी गांव कस्बे कि भजन मंडली जो एक ही मोहल्ले में दोनों छोर पर टेंट लगा कर ज़ोर ज़ोर से चिल्ला कर अपने अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने में लगी हैं। हाँ यार, इनका स्तर तो इतना गिर गया है, कि इनकी तुलना करना याने सामने वालों कि बेइज्जती ही करना  होगी।ये लोग सत्ता के लिए कुछ भी करने,बोलने को तैयार हैं, किसी भी हद्द तक जा रहे हैं और हम सब (सभी जाति, धर्म, संप्रदाय) अपने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए इनका साथ दे रहे हैं, आपस में ही लड़ रहे है, इनको न राम प्यारा न अलल्हा और यीशु. इनका  भगवान वोट है और धर्म सत्ता है, ये तो कफन हो या रथ सभी से वोट निकाल लेते हैं, मारता है देश और देश के सीधे सादे नागरिक।

भाई, ये हिंदुओं को क्या हो गया, आज कल बड़े जागरूक हो रहे हैं,क्या गलत है जब देश में सभी धर्म को माने वाले अपने धर्म,संस्कार,नियम कानून के लिए देश समाज कि उपेक्षा कर रहे हैं तो हिन्दू क्या गलत कर रहा है वो भी देख देख के ही सीख रहा है,क्या धर्म निरपेक्षता का ठेका उसने ही ले रखा है। यार,हमारे पूर्वजों ने सभी धर्मों के लोग इस देश में सम्मान से रहें और देश को अपना समझें, इसलिए “हिन्दुराष्ट्र” घोषित नहीं किया, तो क्या वो उनकी गलती थी? क्या पाकिस्तान सही था? चल छोड़ यार, तू भी आज कुछ अलग ही सोच में लग रहा है।

परंतु इन सब से देश तो खोखला हो रहा है, अब आरक्षण को ही ले लो कितनी वैमनुष्यता फ़ेल रही है, कुछ नहीं है, यार ये तो फिर वो ही वोट कि राजनीति है यदि हिन्दू बटेगा नहीं तो राजनैतिक रोटी कैसे सिकेगी, इसलिए बीच बीच में शगूफ़े छोडते रहते हैं, जिससे हिन्दू संगठित न हो और हम आपस में लड़कर अपना और अपने देश,समाज का नुकसान कर रहे हैं, एक चिंतक,ज्ञानवान पुरुष को राजनीति ने एक वर्ग विशेष का नेता बना दिया और दूसरा वर्ग उसे दुश्मन मानने लगा यह भी विडंवना है। बैसे भीं इस प्रकार के आंदोलनों में जो लोग शामिल है, दोनों पक्ष के वे कौन है, जिनका दूर दूर तक पढ़ाई लिखाई से संबंध नहीं, धंधा पानी कुछ है नहीं, बस इस प्रकार के कामों से ही इनका पेट पल रहा है।

दोस्त, देश के नागरिकों को न तो मंदिर चाहिए न मज़्ज़ित न गुरुद्वारा और न ही आरक्षण उनको तो चाहिए सम्मान, अमन चैन और वह उसके लिए ही जिंदगी भर प्रयास करता रहता है, अपने बच्चों के लिए अच्छे स्कूल,कौलेज में दाखिला जहां से वह पढ़ लिखा कर नौकरी पा सके परंतु इस देश में स्कूल में पढ़ाई के सिवाय सब कुछ होता है, “प्रश्न की कुंजी (Question Bank) ” पढ़कर इंजीनियर बनते है, पैसा देकर डॉक्टर, यहाँ नहीं मिली जगह तो विदेश से डाक्टरी करा के ला रहे हैं, अच्छी बात है परंतु कोई भी देश में सामान्यत; बीमारी भौगोलिक स्थिति और वहाँ के खान पान के अनुसार होती है और उनका इलाज भी उसी प्रकार, खैर सरकार को सोचना चाहिए मगर सरकार भी तो नवनिर्माण और सुधार कार्य में ही सारा पैसा लगा रही है, वो भी प्राइवेट संस्था के माध्याम से, तो नौकरी आयें कहाँ से,क्योंकि तनखा पर कर्च करने पर world bank नाराज होता है।

प्रजातन्त्र में चुनाव एक अहम पहलू है और आज कल जनता का रुझान भी राजनीति में बढ़ा है कारण कई है उनमें से एक अहम कारण व्याक्तिगत/सामाजिक रूप से लाभ लेना है और जिसके कारण जनता का शोषण भी हो रहा है, परंतु इसके इतर चुनाव आयोग को अपना खुद का अमला तैयार करना चाहिए जिससे उसे चुनाव के समय निर्भरता न रहे और उसका खुद का पूर्ण नियंत्रण रहे, इससे देश में रोजगार के भी अवसर बढ़ेंगे। इसी प्रकार जनसंख्या विभाग को भी प्रत्येक 10 बर्ष में होने वाली जनसंख्या आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए अस्थाई नियुक्ति देना चाहिए जिससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे।

आज देश में आमूल चूल परिवर्तन कि जरूरत है सारे पुराने नियम, कानून, संविधान का पुनरावलोकन/समीक्षा होना चाहिए साथ साथ कार्यालयों में प्राप्त आधुनिक उपकरणों  और कार्यों कि विधि में परिवर्तन के कारण प्रति व्यक्ति काम के घंटों का भी पुनर्मूल्यांकन होना चाहिए और उस अनुसार संख्या बल कि गणना होना चाहिए । जैसे इस समय बैक,शिक्षण संस्था के कर्मचारियों पर कार्य का भर बढ़ गया है।

चलो भाई, सरकार बनाते हैं और फिर 5 साल के लिए मार चादर तानके सो जाते है, भाड़ में जाये देश, समाज ज़ोर से बोलो जय हिन्द जय भारत। 

Image Credits: santabanta.com